परी
परी


पाँच जनवरी की वह अर्ध रात्रि थी,
मृगशिरा नक्षत्र की वह घड़ी थी।
उस वक्त मेरे घर आई ,
एक नन्हीं परी।
वो तो दुनिया से अनजान थी,
फिर भी रिश्तों की पहचान थी।
रो-रो के सबको बुलाने लगी,
मुझे हृदय से लगा लो बतानेे लगी।
उसकी आँखों में अजब ऐसी आभा थी,
जैसे बेटी नहीं कोई खजाना थी।
देखते-देखते वो बड़ी हो गई,
आज मेरी अपर्णा परी हो गई।