STORYMIRROR

dr. kamlesh mishra

Abstract

3  

dr. kamlesh mishra

Abstract

परी

परी

1 min
226


पाँच जनवरी की वह अर्ध रात्रि थी,

मृगशिरा नक्षत्र की वह घड़ी थी।

उस वक्त मेरे घर आई ,

एक नन्हीं परी।


वो तो दुनिया से अनजान थी,

फिर भी रिश्तों की पहचान थी।

रो-रो के सबको बुलाने लगी,

मुझे हृदय से लगा लो बतानेे लगी।


उसकी आँखों में अजब ऐसी आभा थी,

जैसे बेटी नहीं कोई खजाना थी।

देखते-देखते वो बड़ी हो गई,

आज मेरी अपर्णा परी हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract