dr. kamlesh mishra

Tragedy

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dr. kamlesh mishra

Tragedy

यादों की होली

यादों की होली

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वसन्त ऋतु आ गई है, कोयल कूकने लगी ।

फूलों पर भँवरे गूँजने लगे, आम के पेड़ों पर

मंजरी दिखने लगी।

खेतों में फसलें युवा होकर इठलाने लगी।

परदेशी वापस अपने घर आने लगे,

हर घर में होली की तैयारियां होने लगी,

लोग नये कपड़े और बच्चों के लिए पिचकारी,

कलर खरीदने लगे सब एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब है।

सब जगह एक ही शोर है

होली आ गई , तैयारी कर लो।


मां आप एक महीने पहले से यह बातें बोलना

शुरू कर देती थीं, हमें अच्छे से याद है कि आप

फुलारा दूज पर हम बहनों से रोज शाम को

होली चौक पर फूल डलवाती थीं और यह प्रक्रिया आप

होली पूर्णिमा तक करवाती थींं, उस रात आप हम

सब को सुलाकर पूरी रात पकवान बनाती थीं और

सुबह हाथ में चाय का प्याला चेहरे पर लाल रंग

होंठों पर मुस्कान आँखों में प्यार और अटूट ममता

का भाव और वो आपकी तेज आवाज़

हम सब भाई-बहन पापा के दिल की धड़कन थी।

 

होली की सुबह आप जल्दी उठकर नहा धोकर

माता की पूजा करके खाना बनाकर खिलाकर

हम लोगों से तैयार होने के लिए कहती थी कि

सब तैयार होकर होली मिलने आ जायेंगे और तुम

लोग ऐसे ही बैठे रहना ।

शाम को जब पड़ोस की औरतों के साथ होली

परिक्रमा पर जाती थींं तो न केवल हम लोगों को

खिलाकर जाती थीं बल्कि अपनी गाय नंदिनी

कामिनी को भूसा खिलाकर पानी पिलाकर जाती थीं।

सच में हम बच्चों के साथ-साथ नंदिनी, कामनी के 

प्रति आपका प्रेम अद्वितीय था। होली की खुशी में

थकान तो आपको छूती भी नहीं थी। सबसे अच्छा

तो तब लगता था जब आप रात को वापस आती  

थीं और पहला सवाल आपका होता था पापा से

होली मिलने कौन आया? कौन नहीं आया ? और

होली परिक्रमा पर होने बाली बातों को आप विस्तार

से बताती थींं उन शब्दों में कुछ प्यार होता था और

कुछ गिले होते थे।

फिर होली आ गई सब कुछ बही है वश आप नहीं हैं

आपके अचानक चले जाने का गम है आँखों

में आँसुओं का सैलाब है आपके साथ बिताए एक-एक

पल की यादें हैं ।

यह सामान्य होली नहीं है यह आपकी यादों की

होली यह होली आपके प्यार

से रंगीन नहीं है यह आपके वियोग में आँसुओं

से भरी होली है आपकी होली है माँँ।



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