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dr. kamlesh mishra

Abstract

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dr. kamlesh mishra

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बादल

बादल

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बादलों से कह दो,

कहीं दूर जा के बरसे।

यहाँ हर शख्स परेशाँ है,

इनके डर से।


इनकी मार से धरती भी,

आहत हो गई।

वह तो इतना रोई,

खुद जलमय हो गई।


अब तक मां के सीने पर,

जो अटल भाव से खड़े रहे।

मां को जब आहत देखा ,

वो भी जड़ से उखड़ गये।


मां के सीने पर लेटी फसलें,

मानव जब देखे ।

नियति पर वो करे भरोसा,

भाग्य को वो कोसे।


आँखों में आँसू भरकर,

रोने को भी तरसे।

बादलों से कह दो,

कहीं दूर जा के बरसे।



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