समर्पण
समर्पण
उठो-उठो दुर्गा मां,
धरती पर विपदा छाई है।
इसे बचाने की मां,
अब तेरी बारी आई है।
स्वार्थ के पुतलों ने मां,
कोरोना का निर्माण किया।
जैविक हथियार बनाकर के,
मानव का संहार किया।
यह प्रकृति का कहर नहीं,
प्रकृति तो पालनकर्ता है।
यह देन है तेरी करतूतों की,
तू प्रकृति को दोषी कहता है।
दुनिया में तेरे आने पर,
जो फूलों का बिछौना देती है।
धरती से तेरे जाने पर,
वह आँचल का बिछौना देती है।
अब हार चुके हम सब अपना,
अभी कोई हल नहीं पाया है।
कर दे समर्पण उसको अपना,
जिसके हाथ में माहमाया है।
अब दानव रूपी कोरोना से,
रणचंडी संंग्राम करेगी।
जगजननी ही रक्षक बनकर,
हम सबका कल्याण करेगी।
