फूल
फूल
आज हम खुद के होश गंवा के बैठे हैं
तन्हा अपने दिल में राज छुपा के बैठे हैं।
कहाँ से शुरू थी कहाँ पर इति थी,
ये जीवन की कैसी अनोखी घड़ी थी।
आज बीते हुए पलों की दास्तांं बना के बैठे हैं।
आज हम खुद के होश गंवा के बैठे हैं।
कभी गिडगिडाई कभी मुस्कराई,
कभी रोके दिल की कहानी सुनाई।
आज ठहरी हुई नदी की धारा बनके बैठे हैं।
आज हम खुद के होश गंवा के बैठे हैं।
कहीं आँधी कहीं तूफाँ,
कहीं पतझड़ की है कहानी।
फिर भी वीराने हम फूल खिला के बैठे हैं,
आज हम खुद के होश गंवा के बैठे हैं।