भरपूर घर जाने की है वहाँ इन्सानियत मानवता और अपनापन भरपूर घर जाने की है वहाँ इन्सानियत मानवता और अपनापन
पर ये दिल, फिर उन्हख्वाहिशों को मुकम्मल करने की तहरीक दे रहा हो जैसं। पर ये दिल, फिर उन्हख्वाहिशों को मुकम्मल करने की तहरीक दे रहा हो जैसं।
यदि तुम जाग जाओ तो ये भी ना रहेगी खोई खोई। यदि तुम जाग जाओ तो ये भी ना रहेगी खोई खोई।
जिंदगी मैं जीते चला, धीरे-धीरे गाँव की माटी को मैं भूलता चला, जिंदगी मैं जीते चला, धीरे-धीरे गाँव की माटी को मैं भूलता चला,
मां को जब आहत देखा , वो भी जड़ से उखड़ गये। मां को जब आहत देखा , वो भी जड़ से उखड़ गये।
सपनों के तुम बीज बनो मैं लहलहाती फसलें, दोनों मिलकर बगिया की रखवाली करते चल दे। सपनों के तुम बीज बनो मैं लहलहाती फसलें, दोनों मिलकर बगिया की रखवाली करते चल ...