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Archana Verma

Abstract

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Archana Verma

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ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

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ख्वाहिशें सुख गई हैं ऐसे 

मौसम के बदलते मिजाज़ 

से फसलें जैसे 

 

क्या बोया और क्या पाया 

सपनों और हक़ीकत में 

कोई वास्ता न हो जैसे

ख्वाहिशें सुख गई हैं ऐसे 

 

कल तक जो हरी भरी

मुस्कुरा रही थी 

आज खुद अपनी नज़र

लग गई हो जैसे ख्वाहिशें सुख गई हैं ऐसे 

 

ये मंज़र देख के हाथ खड़े 

कर लिए थे हमने ,

पर ये दिल, फिर उन्हख्वाहिशों 

को मुकम्मल करने की 

तहरीक दे रहा हो जैसं।


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