दादी का गाँव
दादी का गाँव
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है मेरी इच्छा
शहर के
शौर-गुल से दूर
गाँव के बीच बसे
मेरी दादी के
खपरैल और
माटी की सुगंध से
भरपूर घर जाने की
है वहाँ
इन्सानियत
मानवता और
अपनापन
गायों के
रंभाने की
आवाजें
बैलगाड़ियों की
घरघराहट
बैलों की घंटियाँ
खेतों पर
लहलहाती फसलें
ताजी सब्ज़ियाँ
सब देखने - खाने का
मन होता है
दादी के घर
घूमने जाने का
मन होता है
भर गया है मन
शहरों की चकाचौंध
धोखेबाजी और
बनावटी मुस्कान से
भा गया है अब तो
दादी का गाँव
