गुमनाम जिंदगी
गुमनाम जिंदगी
रात की रंगत चांदनी से हे,मसरूफ है हमारी दस्ताये मोहब्बत,
उसे बेवफाई के पत्थरो से न मारा करो,
कुछ किस्से आज भी है गुमनाम जिंदगी की तरह जिसे शायद कोई न पड़े,
दिल्लेगी की आलम में हे ए जहां,उसे दौलत की बस्ती में न बिकने दो।
कुछ अधूरी सी ख्वाहिश,दिल के सन्नाटे में भी जिंदेगी की परिहास,
दोस्ती भी आजकल लगने लगी है प्यारा सा,
उनसे हर एक मुलाकात में मिलती है सुकून जनाब।
मिलने लगी है चेन की नींद,तोड़ कर देखा जाए तो जुरने लगी है
टूटे अफसाने की हर एक पहेलिया।
मिलने लगी है जवाब सारे,फिर भी सवालों पर भी
मेरा एक सवाल,आखिर ए दोस्ती है ए फिर प्यार।
आंखों की गहराई में दुबकिया लगाते हुए हर दिन बस ए ही सोचता हूं
आखिर ए संगत मेरा आबादी का कारण बनने वाला है
ए फिर बर्बादी का और एक नया सुरबात।
एक अधूरी सी ख्वाहिश दिल में दबाकर भागता फिर रहा हूं
उस अनजान दिशा की और जिसका शायद कोई वजूद ही नहीं।