“ बुजुर्ग और कंप्युटर ”
“ बुजुर्ग और कंप्युटर ”
उम्र के साथ -साथ एकाकी के प्रवेश द्वार खुल जाता है
औरों की क्या बात कहें हम अपना भी दूर हो जाता है
साथी छूट जाते हैं बच्चे खुद में मशगूल हो जाते हैं
सब अपनी -अपनी दुनियाँ में सब खो जाते हैं
घर में कभी एक लैंड्लाइन टेलीफोन हुआ करता था
सब लोगों से गुफ़्तगू कुछ ना कुछ हुआ करता था
अब अनगिनत सिममोबाईल में तो हमने भर दिया
पर अपनों को अपनों से जमकर किनारा कर लिया
यह तो अच्छा हुआ कि डिजिटल का साथ हो गया
हम लोगों से जुड़ गए और सारा विश्व करीब आ गया ।
