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Jyoti Khari

Tragedy

4  

Jyoti Khari

Tragedy

ख्वाहिशों का टूटता हुआ मंज़र

ख्वाहिशों का टूटता हुआ मंज़र

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निभाई हमने सभी मोहब्बत की कसमें,

निभाई हमने वफ़ा- ए- इश्क की सारी रस्में। 

दिल की बाजियां खेली गयी.... 

मोहब्बत- ए- बाजार में। 

उसपर मरकर.... 

जीते रहे हम उसी के इंतजार में। 

खुशियों का दरवाजा फिर कभी ना खुला, 

मोहब्बत में दर्द-ए-आलम के सिवा कुछ ना मिला। 

मैंने अपनी ख्वाहिशों की टूटते हुए मंज़र को बेहद करीब से देखा, 

खुद से दूर जाते हुए अपने उस नसीब को देखा। 

हम क्यों रोए तु उसकी चाह में, 

छोड गया जो तुझे इस जिंदगी की राह में। 

आंखें यूँ समंदर हो गई, 

वो प्यार की ज़मीं भी आज बंजर होगी। 

वक्त गुज़र गया.... 

और मेरा वक्त वहीं पर ठहर गया, 

जब ज़िंदगी से वो हमसफ़र गया। 

मिली है हमको वो सज़ा जिसकी न की थी कोई खता, 

मोहब्बत में दर्द-ए-आलम के सिवा कुछ ना मिला। 

उस जिंदगी पर वार दी हमने जिंदगी ये पूरी, 

फरेब-ए-जाल से हम रूबरू यूं हुए.... 

उन बिन रह गयी फिर ये जिंदगी अधूरी। 

 खैर इस दुनिया में हर शख्स की अपने अलग ही अफ़साने हैं, 

भूल बैठे खुद को उनकी उस झूठी दिल्लगी के लिए, 

सिर्फ उन्हीं के लिए.... 

सिर्फ उन्हीं के लिए। 

हमारी मोहब्बत में ना थी उनकी कुछ भी वफा, 

मोहब्बत में दर्द-ए-आलम के सिवा कुछ ना मिला।।। 



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