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Jyoti Khari

Abstract Romance Tragedy

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Jyoti Khari

Abstract Romance Tragedy

दिल के ज़ख़्म…!!!!

दिल के ज़ख़्म…!!!!

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दिल के ज़ख़्म…

नज़्मों को चिरती हुई आवाज़ हो गए।

बदले बदले…

उनके वो अंदाज़ हो गए।

कहीं गुम…

दिल से निकले उनके वो अल्फ़ाज़ हो गए।

सपने हमारे…

कुव्वत- ए- परवाज़ हो गए।

न जाने कब और कैसे…

हम इस ज़िंदगी से नाराज़ हो गए।

मुसलसल दर्दों की इंतहा…

यूँ बरकरार रही-

मोहब्बत में वो दग़ाबाज़ हो गए।

वो यादों के काफ़िले…

हमारे जीने का एक नया आगाज़ हो गए।

दिल के ज़ख़्म…

नज़्मों को चिरती हुई आवाज़ हो गए…!!!!



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