झूठों की महफिल
झूठों की महफिल
झूठों की महफिल सज रही
अब सरेआम चारों ही ओर
सच बोलने के साहस को ही
गटक गया यहां झूठों का शोर
इसे समय का फेर कहूं
या मानूं बड़ा अभिशाप
झूठ बोलने की स्पर्धाएं
छिड़ीें. शेष न पश्चाताप
गुणवत्ता की बात करते वो
जोे खुद मानकों पर फेल
ऐसे में उपजी अराजकता पे
डालेंगे भला कौन नकेल
हे ईश्वर देश के लोगों को
इतना देना सन्मति अवश्य
युग के माहौल को पहचान
कर खुद तय करें भविष्य।