आशा की ज्योत
आशा की ज्योत
शांत सागर,चमकते सितारें,
प्रतिबिम्ब सतह पर लहराये,
नीला अंबर ख़ामोश फ़िज़ाये,
मन भावन समां रूह को छुए।।
सुन बहन,माँ बापू रोटी लाने गए,
कुछ नहीं खाया सबने दो दिन से,
किसी ने छोड़े घाट पर जलते दीये,
ध्यान से पकड़,नाव को रोशन करें।।
पर माँ बापू अभी तक नहीं आये,
चल ढूँढते उन्हें दीये की रोशनी से,
दीये को आँखों के नज़दीक मत लें,
लौ जलती रहे जब तक वे आ जाये।
बहुत देर हो गयी आज उन्हें आते-आते,
लगता हैं ढेर सारा खाना वे लेकर आ रहे,
दीयों की रोशनी में तट पर भोजन करेंगे,
फिर चाँद-सितारों के आगोश में सो जायेंगे।