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Prem Bajaj

Tragedy

4  

Prem Bajaj

Tragedy

बेरोज़गारी

बेरोज़गारी

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बेरोज़गारी 


कहीं मर रहा ग़रीब कोई भूख से, बेरोज़गारी में , कहीं

ईश्वर भी बरपा रहा कहर किसानों पर, सूखा बढ़ाने को,


कोई कर के मदद कमा रहा पुण्य, कोई दे झूठी गवाही ,

दिला रहा बेकसूर को सज़ा , कराता मुक्त किसी वहशी-दरिंदे को,

बेरोज़गारी में ये भी रोज़गार है बना लोगों का, 

बेरोज़गारी ने कीमत घटा दी इन्सान की ज़िंदगी की,


बेरोज़गारी में पाने को रोज़गार कत्ल भी इन्सान करने लगा,

कहीं तीर-तलवार से तो कहीं ज़ुबां से लोगों को घायल करने लगा,

होकर परेशां बेरोज़गारी से मां बच्चे का पेट भरने को खुद को कहीं बेचती है,

तो कहीं कोई मां बचाने को सरताज की अपनी जिंदगी बेरोज़गारी में बच्चा अपना गिरवी रखती है,


बेरोज़गारी में तो भगवान भी बिकने बाज़ार में आ गया, 

नहीं पल्ले किसी के पैसा, हर शख्स भगवान को ही नकार गया,

रोज़गार करने निकला इन्सान, ईमान की बोली लगा रहा,

कोई ईमान बेच रहा और कोई देखो ईमान खरीद रहा



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