स्वतंत्र दिवस
स्वतंत्र दिवस
15 अगस्त स्वतंत्र दिवस
कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है भ्रष्टाचार की महामारी ने देश सारा भरमाया है,
स्वच्छ इमानदारी किसी को ना भाती है , चाहे हो जनता या कोई सरमाया है,
लगाकर मुफ्तखोरी का लहु होंठों पर जनता के, जनता को मुफ्तखोर बनाया है,
भोली-भाली जनता आ जाती है झांसे में सरमायदारों के, जनता को आरामपरस्त बनाया है,
खोले बैठे हैं धर्म का व्यापार , व्यापार के धर्म पर किसी ने ना ध्यान दिलाया है,
अनपढ़ता, बेरोजगारी, भूखमरी, बलात्कार इनसे युक्त जीवन संसार में छाया है,
कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है.....कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है।
रखते अंधेरों में निराश्रित जीवों को, महल खूब रोशनियों से जगमगाया है ।
जातिवाद, धर्मवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद,लेकर आढ़ इनकी देश का बुरा हाल कराया है,
रोगिण हुआ देश सारा, लगाते नारे भाई-भाई के ,
भाई-भाई कोई जाति वाला ना बन पाया है।
ऊंच-नीच के भेदभाव ने देखो गंगा को भी मैला बनाया है ,
कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है, कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है ।
कुर्सी का बोलबाला चहूं ओर हो रहा, जिसकी लाठी उसकी भैंस का वाला नारा सामने आया है,
कहते हैं आज़ाद हैं हम मगर के सिल दिए हैं होंठ जनता के, भोली जनता को अभी तक कुछ समझ ना आया है,
फिर भी मेरा देश महान, कुछ देशभक्तों ने ये नारा लगाया है,
कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है, कैसा ये स्वतंत्र दिवस आया है।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
