जादूगरनी
जादूगरनी
गहरे राज़ खुद में सहेजती वो जादूगरनी सी थी,
हर ओर कस्तूरी से प्यार की सुगंध फैलाती वो हिरनी सी थी,
हां जिसे लूटा-खसोटा, सताया-तड़पाया, मारा-काटा नर ने,
वो मां, बहन, बीवी, बेटी, त्याग की वो मूरत सी थी,
जिसे लूटता है नर, उसी को ही फिर पूजता है नर,
लक्ष्मी, दुर्गा हर रूप में अपना जादू दिखाती जादूगरनी सी थी,
ता-उम्र अपने सपनों को कर दफ़न औरों के सपनों को साकार करती,
कभी न लबों पे उसके शिकायत आती सदा रहती मौन सी थी,
एक बार नज़र भर कर देखो तो उसकी मिट्टी को तुम,
शायद तुम उसकी मूक भाषा सुन लो, बोलती जो गुड़िया सी थी,
करते हुए बर्बाद उसे एक पल को न तुझे उस पे रहम आया,
बहाती आंसू जोड़ कर हाथ मांगती तुझसे दया की भीख सी थी,
काश तू सुन लेता सदा उसकी, न लूटता आबरू उसकी,
आज यूं मिट्टी न होती वो खेलती कल मिट्टी में थी।
