जब्त चांद ने तुम्हारा ज़िक्र किया
जब्त चांद ने तुम्हारा ज़िक्र किया
जानता हूँ कि
तुम नाराज़ हो मुझसे
बेशक कभी बताया नहीं तुमने
मगर तुम्हारी खामोशियों की गहराई
तुम्हारी नाराजगी का इज़हार कर देती हैं
यकीन करो या न करो मगर सच ये है कि
तुमसे मिलने के बाद
खामोशियो को पढ़ने का हुनर सीखा है मैंने
जब भी उतरता हूँ
तुम्हारी खामोशियों की असीम गहराई में
तो आभास होता है कि
या तो कोई दर्द छुपा कर रक्खा है सीने में
या फिर नाराज हो मेरी किसी शरारत से
कहने वाले अक्सर कहते हैं कि
नाराज़गी भी उनसे होती है
जो दिल के बहुत करीब हो
जिसे पलकों में बैठाकर आसमान में उड़ा जा सके
बुरा न मानो तो इक बात कहूँ
सच ये है कि अगर तुम रूठ जाओ
तो मनाऊंगा कैसे
क्योंकि ये हुनर तो तुमने
अपने बावरे को कभी सिखाया ही नहीं
आज जब चांद से गुफ़्तगू हुई तो
मैने पूछा चांद से कि चांदनी से खूबसूरत कौन
जानती हो चांद ने क्या कहा
चांद ने भी मुस्कुराकर तुम्हारा ही ज़िक्र किया।

