चुनती रही हूँ
चुनती रही हूँ
क्यों होता है हमेशा मेरे साथ
कि कुछ दूर चलने के बाद
सामने आ जाता है दौरा हा
और मैं खड़ी सोचने लगती हूँ
कौन सा रास्ता चुन
सही और गलत की कशमकश
मुझे झकझोर जाती है
एक पथ है आजादी का
खुशी सिर्फ अपनी खुशी
दूसरा है कर्तव्य पथ
जहाँ सिर्फ बंधन है
छिड़ जाता है एक संघर्ष
बंधन और आजादी के बीच
पर न जाने क्यों
हमेशा दुःख ही जीत रहा है
हारती रही है खुशी
और मैं चुनती रही हूँ
कर्तव्य पथ ही..
