week - 42 घृणा
week - 42 घृणा
जो हर रिश्ता निभाता कहीं गुलाब खिले तो रिश्तों को महकता
लेकिन घृणा देता नहीं दिल को सुकून है हमेशा ईर्ष्या, दुर्व्यवहार,
दिल में झलकता प्रेम दिल से दिल को जोड़ने वाली तरंग है
जबकि प्रेम दुश्मन को क्षमा करने वाली अनमोल भावना है
घृणा अपने रिश्ते, परिवार बिखेर देता घृणा से ही जीवन को पहुँचती चोट है
घृणा से ही जीवन बर्बाद है
प्रेम सुन्दर संगीत, गीत ,धूप - छांव का अहसास है घृणा लाता अपनों से दूर ,
रिश्तों को तोड़ता कर्ता जैसे कोई षड्यंत्र, है
प्रेम पूजा जीवन का आधार जिसमें होती रिश्तों की पहचान है हर इंसान में ईश्वर का वास है
लेकिन घृणा से ही होता बदले का भाव है घृणा से ही अपराध पनपता है
प्रेम में अनुराग, समर्पण है बेगाने को जो अपना बनाये ऐसा व्यवहार है
घृणा से टूटते बिखरते परिवार, रिश्ते
नफरत से उजाड़ घर संसार है
प्रेम हिन्दोस्तान की जान, देशप्रेम है
घृणा एकता को तोड़ती, फूट डालती मजहब में, हर इंसान रहे प्रेम से
घृणा से आता जीवन में क्लेश है
प्यारे भारत देश में एकता, अखण्डता रहे सदा, चारों ओर खुशहाली हो
हर इंसान प्रेम से रहे नफरत का नहीं कहीं निशाँ हो ऐसा परिवेश हो अपना भारत महान हो
