बसता हूं..
बसता हूं..
तन्हाइयों में भी मैं अब तन्हा नहीं रहता हूं,
बेइंतहा मोहब्बत की दौलत मैंने जो पाई है...
ऐ ख़ामोश इश्क तेरी खुशबू से घिरा रहता हूं,
देह से ताल्लुक नहीं, रूह मैंने उनकी पाई है...
माना हम-सफ़र बन के साथ नहीं चलता हूं,
सरगोशियों में उनके इर्द-गिर्द मैं ही बसता हूं...
सच्चाई मोहब्बत की मैं साथ ले के चलता हूं,
बदगुमान इश्क तेरी चाहत में जीता मरता हूं...

