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हरि शंकर गोयल

Tragedy

3  

हरि शंकर गोयल

Tragedy

अतरंगी चुड़ैल

अतरंगी चुड़ैल

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आजकल की दुनिया में ये कैसी विषैली सोच भर गई है 

लगता है कि कोई "अंतरंगी चुड़ैल" मन में घर कर गई है 

नफरतों की आंधियां चलने लगी है जोर से हर तरफ 

उन्मादियों की भीड़ देखो ये कैसा ताण्डव कर गई है 

"सिर तन से जुदा" के नारों से गूंज रहा है ये आसमान 

गला काटने की होड़ आजकल जेहादियों में लग गई है 

मारो काटो के शोर में कहीं विलुप्त हो गया है प्रेम "हरि" 

1947 की सी परिस्थितयां आजकल फिर से बन गई हैं 

संविधान से चलेगा या शरिया से सोचना बहुत जरूरी है 

हर प्रबुद्ध मन के अंदर यह ज्वलंत बहस छिड़ सी गई है। 



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