मूषक जी परनाम!
मूषक जी परनाम!
मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम,
फँस गए हैं उधार के दलदल में हम,
मार रही महँगाई भी होकर बेरहम।
साथी रहों आप गणराया के हरदम,
और, कर्ज़े की महामारी लेई हमार दम!
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
कोरोना वायरस ने मारी हमको जो लात है,
वैक्सीन की कर रहें हर कोई बस बात है,
अब्जों की आबादी में कौं कौं पाएगा ये सवालात हैं!
इसकी भी न लूंट मचे, औ' सड़े हवालात में जमजमाजम जम!
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
काम धाम कुछ चलता नहीं ठीक से कहीं,
नौकरशाही फिर भी खड़ी सीना तान वहीं,
गरीब बनते जाते और भी गरीब, जबकि, अमीर,
बनते और भी ऊँचे अमीर, ये नहीं है सही!
कुतरिये लकीर ये अमीर-गरीब के बीच की तमतमातम!
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
हर कोई भरता अपनी कोठी, कोठे और टंकी काले धन से ही,
पाँच साल की मौज उड़ाकर चलते बनते मंत्री औ' मदारी भी।
परवाह नहीं किसीको किसानों और जवानों की जान - मान, संतान की!!
कुर्सी पर बैठे नेता, पुलिस पर चलाओ डंडे आप दनदनादन दन।
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
व्यापार सजायें बैठें हैं डॉक्टर, वकील, शिक्षक और हकीम,
पीसते जा रहें बेवज़ह दो फीतों की चक्की में मुमताज़ और सलीम,
शहादतें भगतसिंह की भूलकर हँस खेल रहें नामर्द होली रक्त से रंगीन।
मिटाकर पशुता मूषक जी, आप ही जलाओ चिन्गारी हर इंसां के दिल में टिमटिमाटिम!
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
दिनरात जो करतीं कुरकुर किरकिर धमधम
क्या कहनें! डरती सिर्फ़ आप ही से हरकदम,
पत्नी जी को ख़ूब नचाया मूषक जी आपने
बिन बरखा भिगोया अश्कों से धमधमाधम।
कि, मूषक राज करें तुम्हें साष्टांग प्रणाम हम।
