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Mrugtrushna Tarang

Inspirational

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Mrugtrushna Tarang

Inspirational

आज़ाद हिंद के नौजवां

आज़ाद हिंद के नौजवां

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न करते ग़र तुम्हें बेदख़ल दिल से ,

ज़िंदगी न होती तो मोहताज भी।

यादों के दरम्यां तुम्हारा यूँ गुज़रना,

सर क़लम करने से न रोकता तभी।

हक़ीकत से यूँ न रहो महरूम की,

गुलज़ार होते होते पतझड़ न छा जाए कहीं!!


ग़ुबार न रखना जमा दिल में राहबर,

कूचे से गुज़रने का सबब मिट जाएगा वहीं।

मुकद्दर से तो लड़ जाऊँ, नाराज़गी से कैसे,

रूठने मनाने में पल पल को गँवाना नहीं।

तोहमतें ज़माने ने लगाई जब जब मुझ पर,

याद आया आयत के दरम्यां भी बस तू ही।।


मर्हूम कहलवाने की न लाना मोहलत कभी,

ज़हमत उठा लूँ, मेरे महबूब, ग़र तू हो राज़ी।

मज़हबी दंगों से चल ऊपर उठ जाएं, जी लें

जऱा सा हँस बोल लें, बन जाएं मुल्ला काज़ी।

रहनुमाई ही तो आती है काम ए जन्नतनशीं,

दहलीज़ न लांघ मुल्क का, हे स्वदेशी हाजी।


अदा करना ही तो सिखाया है ऋण नमक का,

मुहाज़िब हो तुम, इस देश का जहाँ हुए पैदा।

रंग खून का न हो फीका, लक्ष्य जिंदा रखना,

आज़ादी है बाकी, निर्भया की इज्ज़त ले बचा

बेख़ौफ़ जी सकें हर उम्र की रानियाँ यहाँ वहाँ,

रख याद इल्म तेरा, राम राज्य उजागर करना।


तुम पर है विश्वास ख़ुद से ज़्यादा, ओ रहनुमा,

सरफ़रोशी पाल, लड़े क्रांतिकारी जुम्मा, जुम्मा

दुश्मन हो जगा भीतर तेरे, सरकलम कर देना,

दीवारें नफ़रत की तोड़, हरदम दिल की करना

तुझमें ही है राम भी और रहीम भी, याद रख,

तू ही ख़ुदा, जिसस, ईश्वर, वाहेगुरू और माँ।।


शिवाजी तू, रानी लक्ष्मीबाई भी तू, फ़क्र हो

जिस पे वो परवरदिगार भी तू, ईमान भी तू।

न देना कुचलने पैरों तले कुर्बानियों को उनके,

रक्त से लिखी गई क़ुरान, बाइबल, गीता, ग्रंथ

स्वदेशी हैं हम अपने हिंदुस्तान के, ए हमनवां,

दूँ दुवाएँ, लूँ बलैयां, रहे सलामत तू महेरबान!


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