तुमसे ही..
तुमसे ही..


ग़म औ' ख़ुशी के दरम्यां
हो जाओ कहीं तुम गुमशुदा
साँसें उखड़ने लगें क़भी या
दिल बैठा चला जायें आरपार...
पुकारना एक आख़री बार
पाओगी मुझे अपने आसपास हरपल, हरदम, हरबार।।
दब जाओ क़भी कहीं
परेशानियों के मलबे तले,
उलझनों में भी क़भी घिर जाओ
या सूझे न कोई राहें या मंज़िलें..
पुकारना एक आख़री बार
पाओगी मुझे अपने आसपास हरपल, हरदम, हरबार।।
तन्हाई जीने न दें या उक्ता जाएं मन,
अंधेरा उदासी का छंटने न पाएं ग़र,
दर्द ए दिल की दवा भी न मिलें जब
अश्क़ों से जी न छुड़ा पाओ अगर
पुकारना एक आख़री बार
पाओगी मुझे अपने आसपास हरपल, हरदम, हरबार।।
ख़ालीपन खलने लगें बारबार,
मुस्कुराहट हो जाएं बेवज़ह तारतार,
डर का मंज़र फैलें ज़ारज़ार,
भरोसा न रहें औ' हो जाओ तुम बेज़ार...
पुकारना एक आख़री बार
पाओगी मुझे अपने आसपास हरपल, हरदम, हरबार।।
क्योंकि चाहत हो तुम मेरी पहली औऱ आख़री भी,
तुमसे ही वज़ूद मेरा, तुम बिन मैं कुछ नहीं।