बेशकीमती नगीना
बेशकीमती नगीना
ख़ुशियों से न उलझो यूँ ही बेवक़्त,
सुलझती नहीं अपने से ये क़भी!
सोचा न था होंगें फ़ासले तेरे मेरे दरम्यां ऐसे भी,
सामने थे बैठें फिर भी अपनें से न लगें क़भी!!
उलझनों की दास्तां सुनों कहीं किसी मोड़ पर यूँ ही,
समझ लेना, उसी मोड़ पर ही जो हम थे तुम क़भी!!
दौर सुर्ख़ रहेगा तेरे दिल ओ दिमाग़ में
मग़र, जी जाओ, दुआ करना बेनाम क़भी!
हौंसला अफज़ाई न की, न चाहा तुमने क़भी,
ग़लत इल्ज़ाम के सदक़े ज़िल्लते ही बख्शी!
शौक़ है मर्द बनने का, ज़ुल्म ढाने का क्यों!!
नहीं तोली जातीं इज़्ज़त, यूँ तार तार तोड़ोगे हर घड़ी!!
कहते आये हो हमेशा से, हूँ, फिर भी नहीं हूँ
ख़ौफ़ पालों अब तुम, मैं हूँ भी और नहीं भी!!
बड़ी सख़्त की है जान मेरी, कीलें ठोक ठोक के ही,
बेशकीमती नगीना खो चुके हों, ख़ाक में अभी!!
