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Lakshman Jha

Tragedy

4  

Lakshman Jha

Tragedy

विकास से वंचित

विकास से वंचित

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कुछ दिन हुए,

विकास का ढोल बजा,

खुशियाँ मनायी गयी,

जश्न मनाये गये !

कोई भूखा नहीं रहेगा,

रोजगार मिलेगा,

सड़क और बिजली के

स्वप्न दिखाए गए !!


महँगायी डायन को 

सबक सिखाएंगे,

सबके दिन फिर 

लौट के आ जायेंगे !

“आत्मनिर्भर” बनने की

जो तमन्ना है,

वो सपने हमारे ,

साकार हो जाएंगे !!


देश के हैं प्राण,

गाँवों में ही बसते,

उनकी मेहनत से,

ही हम निखरते !

पहाड़, जंगल,

झील, झरने हमारे,

रक्षा कवच बनकर,

हमारे साथ रहते !!


आज उनकी,

अवहेलना को देख लें,

उनकी व्यथा को

हम जरा जान लें !

विकास उन पहाड़ों पर,

पहुँचा कहाँ ?

उनके जीवन को,

जरा पहचान लें !!


कुपोषण और दरित्रता,

से लोग मरते,

वस्त्र के अभाव में,

हैं दिन गुजरते !

भोली -भाली,

लड़कियाँ और बच्चे,

स्वप्न के संसार में

ही वे विचरते !!


स्वास्थ्य, शिक्षा की

बातें कल्पना है,

आज क्या खाएंगे ?

वह भी सोचना है !

यही है स्वप्न,

“आत्मनिर्भर देश” का

नजदीक से अब,

नेतृत्व को देखना है !!



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