विकास से वंचित
विकास से वंचित
कुछ दिन हुए,
विकास का ढोल बजा,
खुशियाँ मनायी गयी,
जश्न मनाये गये !
कोई भूखा नहीं रहेगा,
रोजगार मिलेगा,
सड़क और बिजली के
स्वप्न दिखाए गए !!
महँगायी डायन को
सबक सिखाएंगे,
सबके दिन फिर
लौट के आ जायेंगे !
“आत्मनिर्भर” बनने की
जो तमन्ना है,
वो सपने हमारे ,
साकार हो जाएंगे !!
देश के हैं प्राण,
गाँवों में ही बसते,
उनकी मेहनत से,
ही हम निखरते !
पहाड़, जंगल,
झील, झरने हमारे,
रक्षा कवच बनकर,
हमारे साथ रहते !!
आज उनकी,
अवहेलना को देख लें,
उनकी व्यथा को
हम जरा जान लें !
विकास उन पहाड़ों पर,
पहुँचा कहाँ ?
उनके जीवन को,
जरा पहचान लें !!
कुपोषण और दरित्रता,
से लोग मरते,
वस्त्र के अभाव में,
हैं दिन गुजरते !
भोली -भाली,
लड़कियाँ और बच्चे,
स्वप्न के संसार में
ही वे विचरते !!
स्वास्थ्य, शिक्षा की
बातें कल्पना है,
आज क्या खाएंगे ?
वह भी सोचना है !
यही है स्वप्न,
“आत्मनिर्भर देश” का
नजदीक से अब,
नेतृत्व को देखना है !!