मजदूर
मजदूर
किसे दर्द सुनाऊँ
मैं किसे कहूँ
मैं मजदूर हूं साहब, मैं मजदूर हूं साहब।
जिस घर में तुम रहते हो,
जो रोड़ मैने बनाई है,
उस पर ही लाश मेरी,
आज पड़ी नजर मुझे आई है।
ना झूठी अभिलाषा, ना दिखाता झूठे ख्वाब,
मैं मजदूर हूं साहब। मैं मजदूर हूं साहब।
भूखा प्यासा, परिवार मेरा,
शहर छोड़ कर निकला है,
ना काम है, ना खाने को,
दुख में बहती, लहर छोड़कर निकला है,
मकानों के मालिकों ने,
डाला मुझ पर, किराये का दबाव।
मैं मजदूर हूं साहब, मैं मजदूर हूं साहब।
इस लाकडाउन ने, मुझे घटनाओं से घेर लिया।
कहीं, मुजफ्फरनगर, कहीं, औरैया,
कहीं नेताओं ने मुहं फेर लिया।
रोते-रोते कहता हूं सुनलो कुर्सी के नवाब,
मैं मजदूर हूं साहब, मैं मजदूर हूं साहब।
बहुत देर में करा आपने 20 लाख करोड़ के,
राहत पैकेज का ऐलान,
मेरे बच्चे सम्भाल लेना,
मेरी तो चली गई है जान।
ऑनलाइन टिकट बुकिंग करनी,
आती तो, ना जाती मेरी जान,
बस आज में नि शब्द: हूं जनाब,
बस आज में नि शब्द: हूं जनाब।
मैं मजदूर हूं साहब, मैं मजदूर हूं साहब।
किसे दर्द सुनाऊँ,
में किसे कहूँ,
मैं मजदूर हूं साहब, मैं मजदूर हूं साहब।
