STORYMIRROR

ASHISH SHARMA

Tragedy

4  

ASHISH SHARMA

Tragedy

कविता का शीर्षक - मजदूर की मजबूरी

कविता का शीर्षक - मजदूर की मजबूरी

2 mins
219

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।

कोई काम हो मेरे लायक, आपके घर में, 

मुझे बता देना। 

जो खाना आप खाते हो, 

होटलों का, वो झूठा ही खिला देना।

मेरी क्या गलती हैं इस, लाकडाऊन में। 

मेरा घर बार सब उजड़ गया ।

फंसा बैठा हूं, में शहर में, 

गांव भी मेरा बिछड़ गया। 


कल मां का फोन आया था, पूछ रहीं थी, 

बेटा क्या हाल चाल है, 

तबीयत बा ठीक हैं। 

मां को क्या बतलाता, 

मांग के खानी पड़ रहीं भीख हैं। 

मांग के खानी पड़ रहीं भीख है । 

जिंदगी मेरी ऐसी हो गई है, 

उसे मौत के, तराजू में तोल रहा हूं। 

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।


इतने में मां कहने लगी, 

बेटा लाकडाऊन खोलने के बाद ही, घर आना। 

पर कुर्सियाँ तो कुछ और कहती हैं, 

मजदूर हो तो मर जाना। 

मजदूर हो तो मर जाना। 

सोच में पढ़ जाता हूं कई बार, 

कि बड़े-बड़े वादे करने वाले, 

वादे निभाते नहीं हैं। 

कौन-सा धर्म, मजहब कहता है, 

की नेता देश को खाते नहीं हैं। 

की नेता देश को खाते नहीं हैं। 


निकला हूं घर जाने की उम्मीद से,

पर भूखा प्यासा ही डोल रहा हूं। 

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।


नेताजी आगे क्या कहूँ, आप सब जानते हैं, 

मेरे पास तो कहने को शब्द नहीं हैं। 

मुझे घर जल्दी पहुंचना है, 

आज मेरे पास वक्त नहीं है। 

आज मेरे पास वक्त नहीं है। 

बस भूखा प्यासा चलता जा रहा हूं, 

बम बम बोल रहा हूं। 

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।

नेताजी मैं मजदूर बोल रहा हूं, 

आज होकर मजबूर बोल रहा हूं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy