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Shakuntla Agarwal

Tragedy

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Shakuntla Agarwal

Tragedy

"बदरा, अब तो बरसों रे"

"बदरा, अब तो बरसों रे"

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किसानों ने बीज़ खेतों में रोपे,

खलियान सूखे बिन बदरा के,

अँखियाँ ताक - ताक हैं हारी,

बारिश बिन कैसे खिले फुलवारी,

हे बदरा ! अब तो बरसों रे,


करवट ले ले रैन बिताऊँ,

विरह अग्नि में मैं जली जाऊँ,

संदेशा मोरे पी को पहुँचा दो, 

बदरा संग बरसे मोपे आये,

पी का हिय का मिलन करा दो,

प्यासी कब से प्यास बुझा दो,

हे बदरा ! अब तो बरसों रे,


टिटहरी भी पुकार के हारी, 

मैं प्यासी हूँ प्यास बुझा दो,

कित जाऊँ वो ठोर बता दो,

नदी - तालाब सभी तो सूखे,

बिन तुम्हरें लगें रीतें अधूरे,

उन पर अपनी मेहर बरसा दो,

हे बदरा ! अब तो बरसों रे,


सावन की रुत आई अलबेली,

अँगिया भी कस गई निगोड़ी,

झूला झूलूँ मेघ - मल्हार गाऊं,

अपने प्रियतम को मैं रिझाऊँ,

कोयल कूंकें मयूरा नाचे,

नाच - नाच तुम्हें पुकारें,

हे बदरा ! अब तो बरसों रे,


घनघोर घटायें जब भी छायें,

मन उल्लास से भर जाये,

ऐसे में पिया मिले मोहे आये,

धरती प्यासी मैं भी प्यासी,

बरखा जब दोनों पे बरसेगी,

तन - मन की प्यास बुझेगी,

"शकुन" अग्न शीतलता में बदलेगी,

हे बदरा ! अब तो बरसों रे ||


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