समय : घडी की गती
समय : घडी की गती
यह वक्त है,
जो किसी के लिए नहीं रूकता,
वक्त का पहिया,
सिर्फ अपनी गति से ही घूमता,
चाहे मुसीबत हो,
या दुख की घड़ी हो,
यह कभी अपनी गति,
हल्की और मद्धम,
नहीं करता,
दुख के बादल,
चाहे कितने भी काले,
और,
गहरे क्यों ना हो,
घड़ी का मन,
किसी के लिए नहीं बदलता,
घड़ी का पल,
किसी भी सूरत में,
किसी के लिए।
किसी के लिए भी नहीं ठहरता,
लाख पकड़ना चाहे,
इंसान इसके काटें को,
यह किसी के पकड़ने से भी,
नहीं रूक पाते,
कितनी अदभुत,
यह चीज उस ऊपर वाले ने बनाई,
जिसकी डोर,
खुद अपने पास रखी,
किसी इंसान के,
हाथों में ना थमाई,
घड़ी,
जिसके रुकने की,
घड़ी कभी नहीं आई,
आदिकाल से इस कलयुग तक,
घड़ी वक्त की ना रुकने पाई
वाह रे ! भगवान,
अजब यह तेरी लीला है,
इंसान की हर घड़ी का वक्त,
तो तय है,
जब जाना है,
तब थम जाती है,
वक्त की सुई,
अपनी गति पर,
आगे बढ़ जाती है,
पीछे रोता,
हमको छोड़कर,
वक्त हम से आगे बढ़ जाता है,
यही शायद,
कालचक्र कहलाता है,
गम तो क्या,
किसी का कलेजा,
चाहे फट जाए,
पर जाने वाला वक्त,
कभी पीछे मुड़कर,
नहीं देखता है,
हम सभी,
वक्त के सताए,
वक्त के मारे हैं,
बस वक्त के सामने,
ही तो हम सब हारे हैं,
हर तरफ,
बस हा हा कार,
चीख-पुकार है,
यह सब वक्त का,
बनाया ही मायाजाल है,
इसके जाल में,
हम सब फस जाते हैं,
कस जाते हैं,
घड़ी के प्रचन्ड, मायाजाल में,
पर इसके इरादे,
किसी की भी कंहा समझ में आते हैं,
हिम्मत रखो !
यह घड़ी भी टल जाएगी,
दुख की बदली,
के बाद,
गुनगुनाती, सुनहरी सुबह,
फिर आएगी,
वक़्त के दिए हुए गम, के,
बादल छट जाएंगे,
खुशियां ही खुशियां होगी,
जहां पंछी फिर से चहचहायेगेंं,
पक्षी फिर से आसमान में,
उड़ कर दिखाएंगे,
चारों तरफ आज सन्नाटा है,
खेतों में पसरा,
वक्त की सुनहरी धूप मे,
नई फूलों के खिलने का,
मौसम आ जाएगा,
वक्त आज बुरा है पर,
सख्त मानव भी,
कल पिघल जाएगा,
वक्त कहां कब,
एक जैसा रहता है,
आज पतझड़ है तो,
सावन कल फिर लहरा जाएगा,
दिल में नमी आ जाएगी,
जब वक्त कठिनाई का,
निकल जाएगा,
डटे रहो,
वक्त के साथ,
यही वक्त कल,
बगिया को फिर,
महका जाएगा,
जाने वाला समय,
लौटकर नहीं आता,
पर आने वाले वक्त को,
हम फिर खुशहाल बनाएंगे,
घड़ी की सुई,
इस कदर,
जो भाग रही है,
वादा है,
हमारा हम सब से,
वक्त से आगे,
बढ़ कर दिखाएंगे।