इंकलाब!!.
इंकलाब!!.
आज इंकलाब का नारा फिर हो जाए,
जो है, बंदिशों में,
क्यों ना ?
आज आजाद वह हो जाए,
बरसों से गुलाम थी जो,
क्यों ना?
गुलामी की बेड़ियों से,
स्वतंत्र वह हो जाए,
चाहती थी,
वह भी होना आजाद,
पर पहल करे कौन ?
पहले तय यह हो जाए,
आसान नहीं,
लांघना चौखट संस्कारों की,
तो पहले संस्कारों की,
शुरू पाठशाला हो जाए,
कहना यदि !! संस्कार नहीं तो,
सहना भी संस्कार का,
अध्याय नहीं,
पहले संस्कारों पर,
चर्चा सरेआम हो जाए,
क्या घुट-घुट कर सहना ?
हम औरतों का गहना है ?
क्या ? किसी ज्यादती को सहना भी,
है,हमारा मूल्यवान गहना है ?
क्यों ना ?
हम इस सहने और दम घोटूँ,
माहौल से जुदा जाए,
अपनी चाहतों को बुलंद कर,
क्यों ना आजाद,
आज हम हो जाए,
घर रहना,
किसी से कुछ ना कहना,
अत्याचार की भाषा
और उस पर ना अपना,
विवेक खोना,
पुरुष करें, वह सब सही,
तुम औरत हो इसलिए,
मुंह सी लेना,
पुरुष करें अत्याचार,
दे, अंजाम अगर,
बलात्कारीता को, तो,
तेरे भाग्य में यही था,
ना सह पाए,
अपमान तो,
खुशी खुशी,
संसार
को अलविदा कहना,
शोषित होना पर,
शोषण के खिलाफ,
एक शब्द ना कहना,
दे, कोख से जीवन जिसे,
उसके अत्याचार को,
मौन हो देखना और सहना,
कितना आसान है,
पुरुष का सब बातें,
हंसकर कह जाना,
भरे बाजार अपनी ही,
महिलाओं पर आवाज,
बुलंद कर जाना,
जतला देना,
तुम कुछ नहीं,
जूती हो! हमारे पांव की,
क्यों ना ?आज,
इस मानसिकता से,
जुदा यह समाज हो जाए,
आज निकाली है,
अपने हक के लिए आवाज,
तो यह आवाज फिर,
गुम ना होने पाए,
फिर उठो,
आजाद हिंद की नारियों,
जिससे हर पुरुष का अत्याचार,
तुम पर अब ना हो पाए,
तोड़ पुरानी जंजीरों को,
औरत फिर आजाद हो जाए,
बिगुल आजादी का बजा दो,
आजाद हो गई अब नारी,
नहीं परतंत्र अब वह,
यह घोषणा,
सरे बाजार हो जाए,
उठो नारी उठो,
लक्ष्मण रेखा पार करो,
ना सहो अब कुछ भी,
अब तो आजादी की बात,
चहूँ ओर हो जाए,
आवाज करो,
बुलंद अपनी,
क्यों ना ? मन से भी,
आजाद,
आज हम हो जाए,
और,
इंकलाब का नारा,
पूरे जोर शोर से,
आज फिर हो जाए।।