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Sheetal Raghav

Inspirational

4  

Sheetal Raghav

Inspirational

ख्वाहिशे!!!

ख्वाहिशे!!!

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कोई फरियाद,

कोई ख्वाहिश,

कोई तमन्ना,

अब हम पूरी नहीं कर पाते,


क्योंकि दिल बुझे बुझे और,

उथले से हो गए हैं,

उथले मन से, 

आशाओं के दीप, 

नहीं जलाए जाते,


जब मन दुखी हो, 

तो, 

दिल के संवाद भी,

सुनाई नहीं दे पाते,


कानों को मेरे, 

इन खामोश सन्नाटो की, 

आदत नहीं, 


पर लगता है,

अब खामोश सन्नाटे भी,

मेरे कान में, 

झुनझुनी दे जाते हैं,


रुके रुके कदमों की, 

आहटे,

भी मेरे हृदय को, 

हिला जाती है,


मन में जो दबी सेहमी, 

चिंगारी है, 

उसको हवा

यह खामोश राहे दे जाती है,


  

चल उठ, 

ना, तन्हा बैठ यहां,

यहां पर कुछ और, 

देर तुझे रुकना क्यों है?


सांसों से अभी, 

तू जिंदा है,

फिर यहीं पर तुझे,

थमना क्यों है?


अब कोई आती-जाती

सांस मुझे हिला नहीं पाती,

सन्नाटे के बीच, 

कोई फरियाद, 

सुनाई नहीं आती क्यों है,


मैं रुक गई हूं या, 

घड़ी रुक गई है,

इसके चलने की मेरे जिस्म में

संवेदना आती क्यों नहीं है,


दीप जला रही हूं,आशा भरे,

जले हुए दीपों में,

आशा की किरण, 

अभी तक जगमगाई नहीं क्यों है?


वह देख, 

एक किरण,

शायद उस ओर से, 

आ रही है,


जीने की फिर, 

एक चाहत, 

रोशन किए जा रही है,


आज उजाले जैसे, 

सन्नाटे को चीरकर, 

आशा रूपी किरणो के दिये,

मेरे दिल में, 

चेतन मस्तिष्क में, 

जलाए जा रहे हैं,


अब लगता है,

हृदय में,

मै आशाहीन नहीं हूं,


जिंदा हूं, मैं अभी,

कब्र में लेटा, 

कोई इंसान नहीं हूं,


लौट आई,

चेतना

किरण को देखकर

अब जज्बात मेरे

खिले खिले से क्यू हैं ?


सहमें और डरे हुए नहीं है,

अब फरियाद,

ख्वाहिशें और, 

तमन्नाओं के दीप,

एक साथ जल रहे हैं,


अब थमा थमा सा, 

यह संसार नहीं है,


एक साथ हजारों दिल,

 के दिये,

जलकर सन्नाटा, 

कानों का दूर कर गए, 


अब मिलो तक, 

कोई सन्नाटा ही नहीं है, 


यही आशा के दीप, 

हमेशा जलाए रखना है,

हम सभी अभी जिंदा है,

मुर्दा तो नहीं है।।


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