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Sheetal Raghav

Classics Fantasy Inspirational

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Sheetal Raghav

Classics Fantasy Inspirational

मै, कवी हूं ।।

मै, कवी हूं ।।

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अकेले, 

बैठे-बैठे, 

खुद को पहचान रही हूं मैं,


जरा जरा सा ही, 

सही, 

पर खुद से 

जान पहचान कर रही हूं,मैं, 


क्या मैंं वही हूं ? 

जो थोड़ा वक्त, 

पहले थी,


या, 

आज खुद से ही, 

अनजान हो रही हूं,मैं, 


वक्त की स्याही, 

क्यों ?

इस कदर मेरी छवि पर, 

हावी हो रही है, 


कि धूमिल मेरी, 

खुद की परछाई 

हो रही है,


अंजान से, 

वक्त के थपेड़े हैं, 

जो मायूस मेरे मन में, 

दबे हौसलों,

को कर रहे हैं, 


डर रही हूं, 

या,

सहम रही हूं, मैंं, 

या,


फिर मौसम के, 

बदलने का, 

यही बंद कमरे में, 

बैठे-बैठे, 

इंतजार कर रही हूं मैं,


यह वक्त है, 

खराब, 

या, 

हार है मेरी, 


जिसका जिक्र, 

करने से पहले ही, 

थोड़ा सा, 

हिचक रही हूं मैं, 


थम नहीं रही हूं, 

ना ही डर रही हूं,

 

पर हार,

ना जाऊ,

उस पर अपने, 

खुद के हृदय को,

मजबूत कर रही हूं, मैं,


थोड़ा सा गर,

साहस किया, 

होता, 

तो, 

यह वक्त की, 

मार, 



और, 

अपनों के दिए 

घाव, 

ना, 

रिस-रिस कर,

घाव को

नासूर कर देते,



इसिलिये, 

वक्त रहते,

आगे आने वाले 

तूफान से, 

शायद 

खुद को, 

सजग कर रही हूं,मैं, 


दबा - दबा सा ही सही, 

पर अपना 

मस्तिक को 

फिर चेतन 

कर रही हूं,मैं, 



ठहरने का वक्त 

चला गया, 

अब तो, 

स्याही, 

और कलम से, 

अपने इरादों पर 

धार कर रही हूं,मैं,

 

फिर उठी हूं, 

जी सकने के लिए, 

ताकत को, 

आज खुद की 

पहचान रही हूं,मैं, 


जो अपनों के, 

दिए घाव है, 

उन्हें, 

समय से पहले, 

नासूर बनने से 

रोक रही हूं,मैं, 


देखो,

बदल लिया है, 

अपने,

आप को, 


आज तो, 

बस खुद को, 

नया, 

नाम देने का, 

प्रयास कर रही हूं,मैं,


आज बढ़ गई, 

चार कदम, 

आगे,


अब तो, 

जो निकल कर, 

उभर आए है, 

चार रास्ते, 

उनके, 

नामकरण 

संस्कार कर रही हूं,मैं,


मिल गई 

मंजिल 

इन रास्तों पर,

मुझे, 

चलते चलते, 


यहीं से, 

आप लोगों को, 

नई राह पर, 

ले जाने का 

अथक प्रयास कर रही हूं मैंं,



कवि हूं, 

आज मैंं खुद को, 

एक,

नई पहचान,

दे रही हूं,मैंं,


आज खुद के, 

ईरोदो को जोडकर,

फिर अपने आप को, 

नया नाम दे रही हूं,मैंं,



आज से, 

बल्कि अभी से,

मैंं, कवि हूं।


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