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Neeraj Kumar

Abstract Drama

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Neeraj Kumar

Abstract Drama

खाली कमरा

खाली कमरा

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ये कमरा खाली सा है आज,

थोड़ा नम सा है।

एक कुरसी, एक मेज, और मेज पर रखी कुछ किताबें

जो नाराज है मुझसे,

शायद इन किताबों को कम पढ़ा था मैंने।


दीवार पर शोकेस के बगल में एक २१ साल पुरानी घड़ी है,

एक पुरानी धुन जुड़ी है इसके साथ,

अभी इस घड़ी का वक्त थमा सा है,

ये वक्त मेरे हाथ से बंधा सा है।


घड़ी से कुछ दूर, वक्त को अपने हाथ में लिए

धर्म चक्र पर विराजमान महात्मा बुद्ध की एक तस्वीर है।

मैं रोजाना इस तस्वीर से बाते करता हूँ,

कुछ अपनी कहता हूँ, कुछ उनकी सुनता हूँ ।

नाराज रहते है वो इंसानों से अक्सर,

खास कर मुझसे।

बहुत कुछ मांगा है मैंने उनसे,

कहते है,

"मांगने सें कुछ नहीं मिलता, पाना पड़ता है।

छीनने से कुछ मिल नहीं जाता, गवाना पड़ता है।"

और कहते है,

"जिसे दिल से चाहोगे उसे खो मत देना,

क्योंकि, फिर नाराज तुम मुझसे नहीं खुद से हो जाओगे।"


और भी बहुत कुछ है यह,

कुछ बेजान तस्वीरें, 

जो बेशकीमती यादों को अपने सीने से लगाए रखती है।


एक चित्रण है हमारे देश का 

जो कई हजार सालों का इतिहास व भूगोल 

एक नक्शे में छिपाए हुए है।

और एक चित्रण हमारे संविधान का है,

जो सर्वोच्च माना जाता है।


एक पुराना गिटार भी है,

मगर इसका साथ देने वाला कोई कलाकार नहीं है।


और भी बहुत कुछ है यहाँ,

अलमारियां, खिड़कियां, दरवाजे, कंप्यूटर, 

और वो सब जो एक कमरे में होता है

और हर चीज के साथ जुड़ी कुछ कहानियां

कुछ किस्से, कुछ यादें।


फिर क्यों ये कमरा खाली सा लगता है?

क्यों ये नम सा लगता है?

बस यही सवाल ढूंढता हूँ ,

कुछ धुन गुनगुनाता हूँ ,

कुछ कहानियां लिखता हूँ ।


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