मिट्टी के- दिल से
मिट्टी के- दिल से
मैं मिट्टी हूं, मेरा कोई मूल्य नहीं,इस संसार में मेरी उपस्थिति सबसे अधिक है,शायद तभी मेरा कोई मूल्य नहीं ।
बरसों से, मेरे लिए कई बार लहू बहाया गया।पर मैंने अपना रंग कभी लाल होने न दिया। ताकत छल कपट लालसा से भरी कई सभ्यताओं का रहस्य आज भी मेरे भीतर सुरक्षित है और आगे भी रहेगा।
धन, अनाज धातु उगाने का हुनर मुझे याद अब भी है।पर इंसान अपना घर, महल मंदिर बनाकर शुक्रिया सिर्फ उसका करता है जिसकी मूर्ति तक मुझसे बनी है।
मैं सिर्फ मिट्टी हूं जिसे इंसान झाड़कर अपने कपड़ों से हटा देता है, पर जीवन के अंत में इसी मिट्टी में राख बनकर मुझ में मिल भी जाता है।
माखन की जगह मेरा सेवन कर श्री कृष्ण ने पूरा ब्रह्मांड यशोदा मां को दिखाया था,भगवान राम ने मिट्टी का ही शिवलिंग बनाकर लंका को जीता था। पृथ्वी अग्नि जल वायु और आकाश की तरह मेरे पास कोई उपाधि क्यों नहीं। मेरा कोई मूल्य क्यों नहीं।?
नहीं नहीं मुझे किसी चीज का अभिमान नहीं, मैं तो महकती भी बारिश की बूंदों से हूं और उड़कर हवा से कहीं भी बिखर जाती हूं। मैं बस सिर्फ मिट्टी हूं, मेरा कोई मूल्य नहीं।
किससे लगाओगे मेरा मूल्य, सोना चांदी पीतल सब कुछ मुझसे उत्पन्न है और मुझमें विलीन भी।
मैं प्रकृति हूं, मैं ही ईश्वर भी, मेरा मूल्य "ही" नहीं,हाँ मेरा "कोई मूल्य ही नहीं"।🙏🙏🙏