अरे! क्या हुआ लड़का, या लड़की?
अरे! क्या हुआ लड़का, या लड़की?
मैं आज पापा बनने जा रहा हूं,
काकी के कहने पर देवी के मंदिर जा रहा हूं सुन्दर सा कान्हा घर आए, "नारि" यल चढ़ा कर मांगने जा रहा हूं ,हां मैं आज पापा बनने जा रहा हूं।
भांजा आया तो सोने की अंगूठी और भांजी आई तोसिर्फ 5100 लूंगी, आने वाले बच्चे की बुआ हूं, शगुन ज़रूर लूंगी ।
बड़े, मंजले और बेटी के हमेशा लड़के की मिठाई खाकर आई हूं, तभी तो गज्जु हलवाई को 51 किलो लडडू पहले ही बोल आई हूं,आज मैं फिर दादी बनने आई हूं।
ये पुरखों की जमीन जायदाद धन दौलत विरासत में लेकर आया हूं,आधा अपने बेटों और बाकी अपने पोतों के नाम करना चाहता हूं,मैं बहुत किस्मत वाला हूं, दादा बनने आया हूं।
चेहरों पर खुशी कम और बेचैनी ज्यादा देख रहा हूं,साफ साफ कहता हूं, होटों पर लड़के की खुशी और आंखों में लड़की न होने की इच्छा देख रहा हूं,पर मैं आज सिर्फ और सिर्फ पापा बनने जा रहा हूं।
मां के कहने पर हर दिन 108 बार मंत्र जाप करती आ रही हूं,ससुराल वालों को हमेशा खुश रखना है, शादी के कई दिन पहले से सीखती आ रही हूं,बस कोई कहदे, कि मैं लड़के की मां "ही" बनने जा रही हूं।
आखिरकार वोह खबर आ ही गई,अस्पताल की नर्स हमारी अपेक्षा को गोद में लेकर आ ही गई,मुबारक हो "लड़का" हुआ है कहकर लड़की होने की दुघर्टना मिटा गई।
कविता पढ़ते पढ़ते आप जरुर सोच रहा होंगे कि मैं कविता में लड़का नहीं लड़की की खबर ही दूंगा,सच कहूं तो डर गया था, इन लोगों में लड़की को सुरक्षित कैसे रख सकूंगा।
कहने को यह सब कविता के पात्र हैं, पर यही तो हमारे समाज के विचार हैं, नहीं रख सका महफूज उसे इस कविता में, इसलिए भेज दिया लड़के को "ही" इस संसार में।
मत आना, मत आना बेटी तुम ऐसे परिवारों में,ढूंढने दो नवरात्रों में कन्या और मांगने दो इन्हें बहुएं अपने बेटों के विवाहों में।
खुश किस्मत हैं वो परिवार जहां बेटियां खुशी से अति हैं,घर को घर नहीं स्वरग बनाति हैं, शायद इसलिएशिव के साथ शक्ति, राम संग सिता और विष्णु के साथ लक्ष्मी हमेशा दिखाई जाती हैं।