नारी अनंतकाल से महान है
नारी अनंतकाल से महान है
कभी दुर्गा तो कभी सीता हो तुम
कभी मां के भेष में बच्चों का पिता हो तुम
क्यों तुम दौड़ रही हो बराबरी की होड़ में
कौन नहीं ब्रह्माण्ड में नारी तेरे जोर में?
पुरुष अपनी जगह महान है,
लेकिन तुझे तो ईश्वर भी झुककर करते प्रणाम है
एक दिन नारी दिवस मनाना, अधिकारों की बातें चलाना
ये श्रृष्टि की दुर्बलता का ही तो केवल एक प्रमाण है
नारी तू अनंतकाल से महान है।
जिस मां के आगे नतमस्तक है सारी दुनिया
क्यों लगती है समाज को वो इक दुखिया
उसकी ममता से पिघलता बड़े से बड़ा चट्टान है
नारी तू अनंतकाल से महान है।
जो अपनो के खातिर बिन सोचे शस्त्र उठा लेती है
निर्मलता की मूरत जब दुष्टों को धूल चटा देती है
आदर, गाली, अभिनंदन सब सुनके बस मुस्का देती है
तुम उसको अपनी इज़्ज़त कहके, संस्कारों की दुहाई देके
चार दीवारों में जो रखते हो, वो क्या कोई सामान है?
नारी अनंतकाल से महान है।
जिस जिस ने ये खोखली प्रथा तोड़ी
शाबाशी की शोहरत उस नारी ने बटोरी
बातें करके अधिकार की
चुनौती देके ललकार की,
तुम कहते हो तुम्हारी क्या ही पहचान है
सुनो!
नारी अनंतकाल से महान है।
सोई शेरनी जिस दिन जाग गई ना
ऐ वादे, दावे करने वालों, तेरा काम तमाम है
वो साक्षर हो या अनपढ़ हो,
उसके अंदर सीता और दुर्गा दोनो छवी गतिमान है
पुरुष है अपनी जगह महान,
किंतु नारी अनंतकाल से महान है।।