मैं यमुना हूँ
मैं यमुना हूँ
मैं यमुना हूँ
तिरस्कृत, उपेक्षित यमुना
दम घुटता है मेरा
राजधानी की गलियों में
मेरा अस्तित्व मिट रहा है
मेरी सांसें कम हो रही हैं।
मैं क्षुब्ध हूँ
अपनी ही सन्तानों की
अवहेलना से
छला जा रहा है
मेरी ममता को
तिल-तिल मर रही है
मेरी ममता।
मैं जीना चाहती हूँ
मेरे बच्चों तुम्हारे लिए
फिर से जीवनदायिनी
बनना चाहती हूँ
मेरे उजड़े किनारों को
फिर से बसाओ
आओ सब मिलकर
वृक्ष लगाओ
मैं हरित छाँव में
बहती निर्मल नीर
बनना चाहती हूँ
हाँ मैं फिर से
जीना चाहती हूँ।