मैं भी लिख सकता हूँ
मैं भी लिख सकता हूँ
समन्दर मे बहती कश्ती को,
मैं नाव भी लिख सकता हूँ।
महबूब के संदली ज़ुल्फों की,
मैं छाँव भी लिख सकता हूँ।
ज़ख्मों से बने नासुर को,
मैं घाव भी लिख सकता हूँ।
दहकते हुए अंगारों को,
मैं प्यार भी लिख सकता हूँ।
ज़ुल्म से जो लड़ जाये वो,
मैं तकरार भी लिख सकता हूँ।
जो वफ़ा ना कर सके उसे,
मैं ग़द्दार भी लिख सकता हूँ।
गीत, ग़ज़ल, कविता और,
मैं कहानी भी लिख सकता हूँ।
वतन पर मर मिटने वाली वो,
मैं जवानी भी लिख सकता हूँ।
लहू से रंगीन होने वाली वो,
मैं रवानी भी लिख सकता हूँ।।
