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Dheerandra Singh

Tragedy

3  

Dheerandra Singh

Tragedy

खाकी खुद शर्मिंदा है

खाकी खुद शर्मिंदा है

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खाकी खुद शर्मिंदा है,

क्योंकि सियासत ज़िंदा है।

महफूज़ नहीं मुज़रिम जेलों में,

सियासी कातिल वहाँ भी ज़िंदा हैं।

खाकी खुद शर्मिंदा है---------------


मरता इंसान आज है कातिलों की गोली से

और जमहूरियत मरती है राजनीत की बोली से।

कोई बात नहीं करता है मज़लूमो कि आहो पर,

क्यों की दिल्ली के होठों पर चुप्पी ज़िंदा है।

खाकी खुद शर्मिंदा है-------------------


आम आदमी मरता है वस अफवाओं पर,

साहिब झूठा शोक मनाते है चिताओं पर।

मज़लूमो की बाते सिर्फ राजनीत के जुमले है,

क्यों की वोटो की दलाली अभी ज़िंदा है।

खाकी खुद शर्मिंदा है-----------------


थाने, भवन, चौराहों पर तुम आतंकी देखो,

अखंड देश को खंड खंड होता तुम देखो।

हमने इंसानियत का अनुष्ठान किया पर,

धर्मो  के  ठेकेदार  अभी  ज़िंदा  है।

खाकी खुद शर्मिंदा है----------------।


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