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VIVEK ROUSHAN

Inspirational

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VIVEK ROUSHAN

Inspirational

हम बदगुमान सा रहते हैं

हम बदगुमान सा रहते हैं

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अपने ही शहर में हम बदगुमान सा रहते हैं

रात भर जाग कर हम रातों से लड़ते रहते हैं


हमारा शहर उजालों से जगमगा तो रहा है

फिर भी कुछ बच्चे इस शहर में फुटपाथ पे रहते हैं


ये बच्चे कौन हैं? कहाँ से आएं हैं ? किसे खबर है

हमारे हुक्मरान तो सिर्फ वोट के इंतज़ार में रहते हैं


वो बच्चे कहाँ जायेंगे? क्या करेंगे? उन्हें नहीं पता, शायद

इसलिए वो हमारे सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाते रहते हैं


हमारा एक ख़्वाब टूटता है तो हम अजाब से भर जाते हैं

उनका क्या? जिनके ख्वाबों में सिर्फ अजाब रहते हैं


नफ़रतें अगर आँखों में हो तो इंसानियत मर जाती है

उन्हें बताओ जो हर वक़्त युद्ध के इंतज़ार में रहते हैं..


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