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Phool Singh

Drama Classics Inspirational

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Phool Singh

Drama Classics Inspirational

शम्भुक ऋषि वध

शम्भुक ऋषि वध

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कोहराम मचा है जिस चौपाई पर

सत्यता उसकी लुप्त हुई

क्यूं रचे उसे तुलसीदास जी,

उनके भाव को जाने वही।।


नास्तिक हूं पर ईश्वर मानता

अंधभक्ति मुझसे होती नही 

अपनी कसौटी पर जब परखता

विश्वास करता उसपे तभी।।


गुण-धर्म से होता शुद्र है 

उसका जाति-धर्म से कोई अर्थ नही 

बाल्मीकि सिद्ध मुनि कहलाए

पत्तल ब्राह्मण नारद ने झूठी चखी।।


शबरी कहलाती शूद्र नारी एक

श्री राम से बैर चखी

भक्ति प्रेमभाव में उसके वशीभूत जो 

ऐसे हत्या नही सकते कभी।।


निषादराज चाहे हनुमान हो

जिनकी आदिवासियों की जाति रही

उनको भी अपनी शरण में लेते

जिनसे दुनियां हमेशा दूर रही।।


ब्राह्मण पुत्र की कथा गलत है 

षड्यंत्र हेतु ये है रची

कीचड़ उछालते उस पर क्यूं लोग

जिसकी जिन्दगी दुःख में कटी।।


राम को कहते सब मर्यादा पुरुषोत्तम

ऐसा करेंगे न कर्म कभी

शम्भुक ऋषि को मार न सकते

झूठी ये कुछ ढोंगियों ने कथा रची।।


रामायण को कहते जो काल्पनिक कथा एक

कथा शम्भुक ऋषि की कैसे सही

झोल-घोलमाल़ है उसकी कथा में

जिसने कभी भी ये कथा कही।।


मुक्ति देते जो रावणवंश को

जिनके पापों की गिनती होती नही 

राजनीति है ये सारी उन लोगों की

शान्ति जिन्हें बर्दास्त नही।।


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