परवाह
परवाह
जिसकी करते है, ज़्यादा परवाह
वही अपना देता है, धोखा वाह
बड़ी कठिन हो गई, जीवन राह
शूलों से ज्यादा, फूल दे रहे, आह
जहां पर था उजाले का निशां
दाग भी वहीं पे लगे सुर्ख, स्याह
जिस पर था, हमें भरोसा अथाह
उसी ने हमे किया, बहुत गुमराह
जो थे हमारे कातिल, गुनहगार
हमने भी उन्हें दी हुई थी, पनाह
जिसकी मानी थी, ज्यादा सलाह
उसने ही किया अरमानों का दाह
गैरो से ज्यादा, अपनों ने की डाह
हर जगह स्वार्थ का दिखा, गुनाह
हम भी साखी वहां पर थे डूबे,
जहां न था एक बूंद जल प्रवाह
जो अच्छा लगे, चलता हूं, उसी राह
छोड़ दी फिजूल चिंता, ख़ामोखाह
अब न करता हूं, किसी की परवाह
में बन गया, स्व मस्ती का मल्लाह
स्वतंत्र हो दरिया में चलाता, हूं नाव
जो क्या खूब लहराती है, वाह-वाह
अब जीवन में हो गया हूं, बेपरवाह
छोड़ दी दूसरों से करना, अब चाह
अति विश्वास से ही साखी हुआ, तबाह
छोड़ दिया यकीं करना खुद के सिवाय।