भूख
भूख
देख कर उन हाथों को कांप उठती हैं रुख़,
किसी के भी आगे गिरने पर
मजबूर कर देती हैं यह भूख।
न छत उड़ने का डर सताए,
न बिजली जाने की चिंता सताए,
ज़ालिम है यह खाली पेट का दर्द,
जो हर वक़्त हर घड़ी रुलाए।
दे कोई खाना तो फट से खा जाऊं,
हफ़्तों से हूं भूखा तुझे कैसे बताऊं ?
डर गए वो देख मुझे खाते,
सोचने लगे बिना खाएं तुम कैसे रह पाते ?
आज हर कोई बताए,
कौन कितना खाना बचाए ?
अरे एक बार बस्ती में हो आओ,
दाने दाने का मूल्य समझ पाओ।
