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KHYATI PANCHAL

Abstract

4.3  

KHYATI PANCHAL

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रिश्ते

रिश्ते

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221



पानी को नहीं पता कि वो किस काम आएगा,

जिस पानी को तुम आज पी रहे हो,

वो कल आंसू बन कर बह जाएगा।


तुम्हे खुद नहीं पता कि कौन तुम्हे कब आजमाएगा,

कल शायद इज्जत बढ़ गई तो तू मौका गवाएगा।


सुबह उठोगे तो वो उजाला दिखाएगा,

पर साथ साथ रात के अंधेरे का डर सताएगा।


अपने ही है जो तुम्हे गिराएंगे,

पराए क्या तुम्हे गिराने लायक जान भी पाएंगे?


धूल से हुआ है सब धुंधला,

सच्चाई देख कर इसे मत बौखला।


आज वही तेरे सामने है जो कल तेरे साथ थे,

आज परायो से है, कल अपनों से अहसास थे।


अनजानी सड़क है या रिश्ते? मोड़ काफी सारे है,

यही तो पता चलेगा कौन अपने और कौन पराए है ।


एक कफ़न ही है जो तेरे साथ जलेगा,

एक बार राख तो हो जा, तुझे याद भी कोई नहीं करेगा।


पैसों से रिश्तों को तोल के देखा तो समझ आया,

की जिसे हम अपना समझ रहे थे, वो हर चहेरा है पराया।


हवा में लिपटे हुए अहसास की अलग ही पहेचान है,

क्या आज भी वो पुराने रिश्तों में जान है?


पतझड़ में पत्ते गिरते हैं, मुसीबत में रिश्ते,

काश फिर से थोड़ी इंसानियत ला दे वो खुदा के फरिश्ते।

         


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