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KHYATI PANCHAL

Abstract

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KHYATI PANCHAL

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धुआं

धुआं

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एक बार में उठता वो धुआं,

आस पास असर कुछ ऐसा हुआ।


अपना हुआ पराया, करीबी हुए दूर,

उस एक चीज की वजह से भविष्य हो रहा है चूर।


करते रहते मना सारे लोग,

की सिगरेट ले रही है सबका भोग।


बच्चे बूढ़े, बीवी बहन,

होता सब पे असर गहन।


आओ मिलकर ज़िम्मा उठाए,

सिगरेट को हमेशा के लिए भगाएं।


जब न होगा कोई सिगरेट का धुंआ,

तब साकार होगी अपनों की दुआ।


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