ऐ ज़िन्दगी.....
ऐ ज़िन्दगी.....
ऐ ज़िन्दगी, तू सिखाने का, कीमत क्यों तय नहीं कर लेती है,
कभी पल में सिखा देती है, और कभी एक उम्र ले लेती है,
अगर सीखने का कोई धर्म है तो, सिखाने का भी होता होगा,
कभी हक़ीक़त का गम देती है, कभी खुशियों का भ्रम दे देती है।
ऐ ज़िन्दगी, तू सिखाने का, कीमत क्यों तय नहीं कर लेती है,
हर पल तू कुछ सिखाती है, कहते हैं तुझे समझाने वाले,
पर ये नहीं बता पाते की, तू कब कैसे क्या सिखा देती है,
किसी की ठोकरों पर दुनिया है, कोई दुनिया की ठोकरों पर,
किसी को सफल प्रयास देती है, किसी को सिर्फ परिहास देती है।
ऐ ज़िन्दगी, तू सिखाने का, कीमत क्यों तय नहीं कर लेती है,
तुझसे मोहब्बत भी की मैंने, तुझसे नफरत भी करके देख लिया,
तू बहुत मोहब्बत से रुलाती है, और नफरत से मज़ाक कर लेती है,
तुझको सीखते कई मोड़ गुजरे, पंकज को हर मोड़ पर तू अनजानी लगी,
हर मोड़ पर तूने इशारा दिया, और इशारा करके नया मोड़ ले लेती है।
ऐ ज़िन्दगी, तू सिखाने का, कीमत क्यों तय नहीं कर लेती है,