चुभती तेरी बातें भी हैं
चुभती तेरी बातें भी हैं
चुभती तेरी बातें भी हैं, शमशीर की तरह
मैं कुछ कह नहीं पाती, ख़ामोश तस्वीर की तरह ।
मुहब्बत भी बेपनाह है, रांझे और हीर की तरह
मगर क़िस्मत बदल नहीं पाई, हाथों की लकीर की तरह ।
दुनिया से लड़ जाऊं अकेली, तीर की तरह
करूं इबादत तेरी, किसी पीर की तरह।
किसी रोज मिलेंगे, भटकी तक़दीर की तरह
जकड़ लेना मुझे, ज़ंजीर की तरह ।
अगर इश्क़ सच्चा और मुहब्बत रूहानी है,
तो मांगना खुदा से मुझे, किसी फ़कीर की तरह ।
माना चुभती तेरी बातें हैं, शमशीर की तरह
तू जरूरी है कुछ यूं, जैसे प्यासे को नीर की तरह।