आज बरसों बाद किसी पे ऐतबार आया
आज बरसों बाद किसी पे ऐतबार आया
आज बरसों बाद किसी पे ऐतबार आया
रोका खुदको याद फिर पहला प्यार आया
पूछा दिल ने ये किन शर्तों पे, मुहब्बत निभा रहे हो
जो कभी अपना था ही नहीं, क्यों उसपे हक़ जता रहे हो
दूसरी मुहब्बत कहूं, या नाम दूं दिलासे का
मानू दिल की, या हो जाने दूं कुआं प्यासे का
माना तुझे पाने का हक़दार नहीं हूं
यकीन कर जो दिल दुखाए मैं वो प्यार नहीं हूं
उसके इन अल्फ़ाज़ों में सच्चाई, आँखों में नमी थी
लगा ये मुहब्बत वही है जिसकी दिल में कमी थी
फिर कई बरसों बाद किसी पे ऐतबार आया
रोका खुदको याद फिर पहला प्यार आया।

